Hoshiyari Dil e Nadan bahot karta hai

होशियारी दिल-ए-नादान बहुत करता है
रंज कम सहता है एलान बहुत करता है

रात को जीत तो पाता नहीं लेकिन ये चराग
कम से कम रात का नुकसान बहुत करता है

आज कल अपना सफर तय नहीं करता कोई
हाँ सफर का सर-ओ-सामान बहुत करता है

अब ज़बाँ खंज़र-ए-कातिल की सना करती है
हम वो ही करते है जो खल्त-ए-खुदा करता है

हूँ का आलम है गिराफ्तारों की आबादी में
हम तो सुनते थे की ज़ंज़ीर सदा करता है

- सैफुल्लाह खान 'ख़ालिद'
(saifullah.vguj)

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