Woh tha zamaana

वो था ज़माना, गुजर गया कब का
था जो दीवाना, मर गया कब का।

उसका जो ज़ख्म वो ही जाने,
मेरा ज़ख्म भर गया कब का।

अपने झूठ के हिसाब खुद करे,
अपना खत्म हो गया कब का।

बहाने, फसाने, झूठे ठिकाने,
जो था, बदल गया कब का।

अब एक नया दिल है 'खालिद'
पुराना दिल भर गया कब का।

-सैफुल्लाह खान खालिद

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