वो जो मोहब्बत में खफा है

वो जो मोहब्बत में खफा है,
सच पूछो तो खफा ही नहीं,
बिना सितम की मोहब्बत हो,
तो उसमें कोई मज़ा ही नहीं।

ज़मीर जाग ही जाता है,
जो फर्ज़ जिंदा हो तो,
अगर उसका जमीर नहीं,
तो वो कभी जिंदा ही नहीं।

अपने हमेशा देते है साथ,
मुश्किल वक्त में,
जो मुश्किल में ना हो, तो
फिर वो अपना ही नहीं।

गरचे उसे इश्क होता तो
कबूल करते ज़बान से,
जो उसने नहीं कहा कभी,
तो वो था ही नहीं।

उसे खुदा का क्या वास्ता?
इश्क की क्या परवाह?
'खालिद' कहते है ना, काफिर
का कोई खुदा ही नही।

- सैफुल्लाह खान 'खालिद'

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