Eid

ना हाथ मिलाया, ना गले मिले, ना मयस्सर तुम्हारी दीद हुई,
अब तुम ही बताओ जाना, ये कयामत हुई या ईद हुई।

मेले लगे, महफिले जमी, और फिर शामे ढलने लगी,
दिल को हमने छुपाए रखा ना इसकी कोई खरीद हुई।

सूरज की तरह अहद रख चलता रहा रास्तों में,
चांद की चांदनी में तुम्हारे चेहरे की तश्दीद हुई।

थे वो कोई और जो भटकाते थे ईमान से तुझको,
उसकी आंखों को देख कर खुदा की तौहीद हुई।

'खालिद' भूल जाओ मनहूसियत को, खैर से रहा करो,
उसके ज़ुल्फ के छाव में, खुशकिस्मती की उम्मीद हुई।

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