मै

मर चुकी है मुहब्बत, जिंदा हु मै,
ज़हर जैसी ही कोई दवा हु मै।

पूछते है लोग उसको अच्छे तो हो,
बस उसके अच्छे होने की वजह हु मै।

लोगो की भीड़ में क्यों ढूंढती हो मुझको,
अकेलेपन में आंखे बंध कर ले वहा हु मै।

महफिलो में मेरा नाम गूंजता है कभी,
इन महफिलों में वैसे भी कहां हु मै।

हर पल तुम्हे आदत है कुछ नया करने की,
'खालिद' हु मै हर पल बिल्कुल नया हु मै।

- सैफुल्लाह खान 'खालिद'

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