Dil dhundta hai fir wahi

दिल ढूंढता है फिर वही फ़ुर्सत के रात दिन,
बैठे रहें हम तसव्वुर ए जाना किए हुए।

जाड़ों की नर्म धूप और आँगन में लेट कर
औंधे पड़े रहें कभी करवट लिए हुए।

गर्मियों की रात जो पूर्वाइयाँ चले
तारों को देखते रहें छत पर पड़े हुए।

उन खाली इतवार में जब साथ हो सभी,
अपनो से फिर दावते मिजगा किए हुए।

फिर शोख कर रहा है तेरे दीदार को,
अक्ल के बदले दिल ओ जान किए हुए।

वादी में गूँजती हुई खामोशियाँ सुनें,
आँखों में भीगे भीगे से लम्हे लिए हुए।

(कुछ धुंधली यादों के नाम)

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