Samarth ko nahi dosh Gunsai
समरथ को नहीं दोष गुंसाई।
असमर्थ में सब दोष है भाई।।
समरथ की तो धाक जमी है।
असमर्थ की तो वाट लगी है।।
समरथ तो भण्डार लगावे।
असमर्थ भण्डार में खा भूख मिटावे।।
समर्थ पे हर कोई वारे जावे।
असमर्थ को कोई मुंह न लगावे।।
घर दफ्तर या हो शाला।
समर्थ का ही बोलबाला।।
असमर्थ जहा भी जावे।
उसको सब दूर भगावे।।
कहत कवि सैफुल्लाह 'ख़ालिद'।
समर्थ हो के बन जाओ मालिक।।
BY Saifullah Khan 'Khalid'
- Inspired by tulasidas' Saying Samrath ko nahi dosh gunsai from Baalkand of Ramcharitmanas, in Ramayana.
Please correct 3rd stanza asamarth bhandaar me kha bhukh mitave
ReplyDeleteThanks did corrected it
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