Bekhyali me yunhi

बे-ख़याली में यूँही बस इक इरादा कर लिया ,
अपने दिल के शौक़ को हद से ज़ियादा कर लिया ,

जानते थे दोनों हम उस को निभा सकते नहीं,
उस ने वा'दा कर लिया मैं ने भी वा'दा कर लिया,

ग़ैर से नफ़रत जो पा ली ख़र्च ख़ुद पर हो गई,
जितने हम थे हम ने ख़ुद को उस से आधा कर लिया,

शाम के रंगों में रख कर साफ़ पानी का गिलास,
आब-ए-सादा को हरीफ़-ए-रंग-ए-बादा कर लिया,

हिजरतों का ख़ौफ़ था या पुर-कशिश कोहना मक़ाम,
क्या था जिस को हम ने ख़ुद दीवार-ए-जादा कर लिया,

एक ऐसा शख़्स बनता जा रहा हूँ मैं 'मुनीर',
जिस ने ख़ुद पर बंद हुस्न जाम बादा कर लिया.....

-मुनिर निया

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