Ek shayari likhi hai
एक शायरी लिखी है, कभी मिलोगी तो सुनाऊंगा,
हाल अपने दिल का, तुम्हे रूबरू में बताऊंगा।
दिल की धड़कनों में कुछ आवाज़ तुम्हारी भी है,
तुम्हारे कान सीने से लाके, बाहों में भर जाऊंगा।
आंखो में नमीं भी है, और एक नूर भी है मेरे लिए,
आंखों से निकलते नूर को, होठों से चूम जाऊंगा।
जो बात तुम खामोशी में रख के चली गई हो,
वो बात बाकी रह गई, उन्हें लफ्जो में लाऊंगा।
किसी पत्थर की तरह तूने जो छोड़ दिया,
वो धोखे की बातें खुद से कैसे छुपाऊंगा।
पर ये सब सोच है, झूठ है, हसीन सपने है सब,
तू जो मिले कभी तो किस हक से हक जताऊंगा।
वो जो शायरी लिखी है ना मैने तेरे लिए,
उसे अब किसीको कभी नही सुनाऊंगा।
- सैफुल्लाह खान खालिद
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