Layak nahi ho tum
तुम्हारे कुछ सवाल है, वो कयामत में भी ना पूछना तुम,
क्योंकि उस वक्त भी बात करने के लायक नही हो तुम।
वक्त के इन खामोश लम्हों को जी भर के जी लेना,
अब वापस मेरे आगोश में आने के लायक नही हो तुम।
चैन से अपनी शाम किसी के बांहों में गुजार लेना,
अब मेरे ख्वाब ओ ख्याल के लायक नही हो तुम।
अब कुछ अफसोस अपनी जिंदगी में रखना भी मत,
फैसले तुम्हारे थे, अफसोस के लायक नही हो तुम।
और अब ये किस्सा किसीको सुनाना भी मत,
मेरा नाम जबान पे लाने के लायक नही हो तुम।
जो कुछ था खुदा की मर्ज़ी का बहाना ही था,
क्या पता खुदा की मर्ज़ी के लायक नही हो तुम।
- सैफुल्लाह खान खालिद
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