Ibtida e ishq
इब्तिदा ए ईश्क है, रोता है क्या,
आगे आगे देखिए, होता है क्या।
सुबह सवेरे एक शोर है क्या,
जाके देख अभी सोता है क्या।
कुछ उगता नहीं इस सरजमीं पर,
ख्वाहिश का बीज यहां बोता है क्या।
निशान ए इश्क ऐसे नही जाते,
दाग छाती के धोता है क्या।
सबसे पहले है तेरी गैरत 'खालिद'
इसके बिना दुनिया में होता है क्या।
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