Maah -e- Sitambar
माहे सितंबर में दिल थोड़ा सा डूब जाता है,
वो ख्याल है ही ऐसा जो कभी कभी आता है
याद मुझे वो लम्हे और मौसम है बहोत से,
अब उन यादों से ही मेरा दिल भर जाता है।
ढूंढता फिरता हूं में मासुमियत उस शैतान में,
जिस का मासुमियत से न रिश्ता न नाता है।
वो शायद मेरी अपनी नही थी बिल्कुल भी,
क्या कोई अपना ऐसे छोड़ के जाता है।
तेरे अल्फाज के कोई मायने नहीं है बिलकुल भी
वैसे भी झूठा इंसान बहाने बहोत से बनाता है।
तेरे प्यार में बर्बाद हो जाता 'खालिद' लेकिन
दिल को फिर तेरा झूठ याद आ जाता है।
-सैफुल्लाह खान 'खालिद'
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