चांद - Chand

ए चांद तेरे फितरत में हुस्न की आबरू है,
तो फिर ये बता के आसमां में अकेला क्यूं है।

ये दाग है जो तेरे, सीने में क्यूं नुमायां,
आशिक है तू किसी का, या किसी की आरजू है।

मैं बेकरार हूं जमीं पर, बेताब तू फलक पर,
तुझको भी आरज़ू है, मुझको भी जुस्तजू है।

इंसान की तू शमा है, महफिल है तू मेरी,
मै जिस तरफ जहां हूं, मंज़िल भी मेरी तू है।

कैसे तुझे सुनाऊं रुखसार ए रोशन उसका,
नहरों के आईने में, शबनम की रंग व बु है।

तू ढूंढता है जिसको, तारो की खामोशियों में,
पोशीदा होके 'खालिद', वो तुझसे ही रूबरू है।

Dedicated to my loved one

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